संगीत आपको और मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करता हैं |
विगत समय में किए गए अनुसंधानों से यह बात सिद्ध हो गई है कि संगीत न केवल मन को शांत करता है, बल्कि यह कई रोगों को दूर करने में भी कारगर है। यही वजह है कि गुणी व श्रेष्ठ चिकित्सक उपचार के दौरान संगीत को भी चिकित्सा-पद्धति का हिस्सा मानते हैं, जिसे राग चिकित्सा कहना श्रेयस्कर होगा।
पटना स्थित बाल चिकित्सा केंद्र के हर वार्ड में बच्चों को प्रिय लगने वाला सुमधुर संगीत सुनना सुखद लगा। गंभीर अवस्था में भी बच्चे खुश थे और कुछ किलकारी भर रहे थे । लय और सुर पर आधारित संगीत हमारे मस्तिष्क की तरंगों और शरीर के चक्र को प्रभावित करता है। हमारे शरीर में असीमित ऊर्जा सुप्त अवस्था में रहती है। सकारात्मक रूप से उसे जगाने में संगीत अहम भूमिका निभाता है। अतः संगीत को सिर्फ मनोरंजन का हिस्सा नहीं मानना चाहिए।
अब डॉक्टरों की भी यह राय बन रही है कि संगीत चिकित्सा से न केवल मानसिक, बल्कि शरीर की कुछ व्याधियों का उपचार भी संभव है। राग रिसर्च सेंटर, चेन्नई ने राग आधारित संगीत से उपचार की संभावनाओं पर अध्ययन कर यह पाया है कि रक्तचाप, सिजोफ्रेनिया और एपिलेप्सी तक का उपचार इससे किया जा सकता है। संगीत से मन खुश होता है तो निश्चित तौर से उपचार के दौरान दवाओं का अच्छा असर होगा। बिस्तरों पर पड़े मरीज सुमधुर संगीत सुनकर उठ बैठते हैं। उनमें एक नए उत्साह का संचार होने लगता है।
चिकित्सकों के मुताबिक बढ़ती उम्र की बीमारियों, मस्तिष्क में चोट और अलजाइमर जैसे रोग तक के उपचार में संगीत विशेष भूमिका निभाता है। हालाँकि हर मरीज पर इसका एक जैसा प्रभाव हो, यह संभव नहीं । यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि संगीत का उस पर कितना और कब तक प्रभाव रहा। संगीत हमारी तंत्रिकाओं को शांत करने के साथ मन को भी एकाग्र करता है। यह जीवन की समस्याओं से पैदा हुए तनाव को कमजोर करता है।
रोगी को भारतीय संगीत को एक बार जरूर सुनना चाहिए। यह राग चिकित्सा ही है, जिसके महत्त्व को आधुनिक चिकित्सकों ने भी समझ लिया है। प्राचीनकाल में इसे नादयोग कहा जाता था। ध्वनि का हमारे शरीर और मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। नादयोग को चिकित्सा के दौरान राजाओं-महाराजाओं के वैद्यों ने भी सैकड़ों साल पहले प्रयोग किया था।
इक्कीसवीं सदी में भी लोगों का इसी राग चिकित्सा पर विश्वास बढ़ा है। इसे हम पूरक चिकित्सा भी कह सकते हैं। कुछ चिकित्सक तो अस्थमा और तंत्रिका संबंधी रोग के उपचार रहे हैं। में राग चिकित्सा का भी प्रयोग कर
संगीत हमें भावनात्मक संबल देता है। राग और वाद्यों की ध्वनि हमारे शरीर में एक नई रसधारा घोलती है। यह एक तरह का रासायनिक परिवर्तन होता है, जिसमें शरीर खुद ही व्याधियों का उपचार करता है या दवाओं के साथ . मिलकर रोग को खतम करता है।
प्राचीन भारतीय ग्रंथ स्वर शास्त्र के अनुसार हमारे यहाँ कोई 72 विशेष राग हैं, जो शरीर की 72 अत्यंत महत्त्वपूर्ण नाड़ियों को नियंत्रित करते हैं। अगर कोई इन रागों को बहुत ध्यान से और उच्चारण को पूरी स्पष्टता के साथ दिमाग में उतारता है तो इससे शरीर की खास तंत्रिकाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
कुछ रागों का तो भावनात्मक और शारीरिक स्तर पर ऐसा गंभीर असर होता है कि व्यक्ति कोमा से भी बाहर आ सकता है। यही कारण है कि बड़े अस्पतालों के तंत्रिका रोग विशेषज्ञ भी इसके महत्त्व से इनकार नहीं करते। संगीत से स्मृति खो चुके मरीजों का भी उपचार संभव है।
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विशेषज्ञों के मुताबिक कुछ राग ध्वनि का ऐसा कंपन पैदा करते हैं, जिससे मांसपेशियों से लेकर तंत्रिकाओं और चक्र तक प्रभाव पड़ता है। नाड़ियों में संचार सामान्य होने लगता है। इससे मनुष्य तनावरहित महसूस तो करता ही है, कुछ बीमारियाँ भी दूर होती हैं।
अभी कुछ चिकित्सक रोगों की चिकित्सा के लिए, जिन रागों का प्रयोग कर रहे हैं, उनमें राग चंद्रकौंस, पहाड़ी राग, राग मालकोस और राग भूपाली व राग तोड़ी हैं। पहाड़ी राग का श्वास संबंधी बीमारियों में इस्तेमाल होता है तो राग चंद्रकौंस का हृदय संबंधी समस्याओं में। रक्तचाप के उपचार में राग असवारी और मालकोस कारगर हैं। राग तोड़ी और भूपाली उच्च रक्तचाप को कम करता है। इसके बेहतर परिणाम देखकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ राग चिकित्सा की खूबियों से हैरान हैं तो मरीज खुश
उम्मीद की जा रही है कि नादयोग अर्थात रोग चिकित्सा का दिनोंदिन महत्त्व बढ़ेगा और सभी डॉक्टर इसे चिकित्सा-पद्धति मानकर मरीजों के कुछ गंभीर रोगों के निदान में प्रयोग करेंगे।
संगीत सुनने से न केवल तनाव दूर होता है, बल्कि रोग से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। वैदिक काल में संगीत से कई रोगों का उपचार किया जाता था।
संगीत के अंतर्गत ही नृत्य शारीरिक और संगीत मानसिक रोगों का उपचार करता था । आज ये चिकित्सा विधियाँ संगीत चिकित्सा और नृत्य चिकित्सा के नाम से प्रचलित हैं।
मोक्षायतन इंटरनेशनल योगाश्रम की नृत्य एवं योग चिकित्सक आचार्य प्रतिष्ठा कहती हैं कि आज ज्यादातर रोग मन की वजह से होते हैं। तीनों विधाओं-योग, नृत्य और संगीत का विषय तन न होकर मन है । मन पर पड़ने वाले प्रभाव का असर बाद में हमारे तन पर भी दिखने लगता है।