अपामार्ग के औषधीय गुण, अपामार्ग कौन - कौन सी बीमारी में काम आता हैं। Apamarg Benifit In Hindi

अपामार्ग कौन - कौन सी बीमारी में काम आता हैं।


आयुर्वेद ने अपामार्ग को एक दिव्य औषधि का स्थान दिया है। वैदिक काल से इसकी महिमा दिव्य औषधि के रूप में रही है। अथर्ववेद में भी (70 सूक्त चौथे कांड में) इसकी संतुति इस प्रकार की गई है "हे अपामार्ग । तू हमारी प्यास, भूख लगने के रोग को नष्ट कर, इंद्रिय शक्ति की कमी और संतानहीनता के रोग को दूर कर, नेत्र की शक्तिहीनता को दूर कर।" अपामार्ग एक क्षुप जाति का 1 से 3 फुट तक ऊँचा पौधा होता है। प्रतिवर्ष वर्षाऋतु में अंकुरित होकर मार्च-अप्रैल माह में सूखने लगता है। जहाँ पर पानी उपलब्ध होता है, वहाँ बारहमासी हरा-भरा रहता है। अपामार्ग दो प्रकार का होता है-एक सफेद डंठलों वाला दूसरा लाल डंठलों वाला 


नाम - ओंगा, चिरचिटा, लटजीरा, अघाड़ा, अपांग, अधेड़ो, चिचड़ा, आधाझाड़ा आदि नामों से अपामार्ग को जानते हैं।


गुण- चरपरा, गरम, पाचनशक्ति बढ़ाने वाला, हृदयरोगनाशक, खुजली, आँव, बहरापन मिटाने वाला, पथरीनाशक, नेत्ररोगनाशक, उलटी लाने वाला, रक्तशोधक, विषनाशक है। इसमें बवासीर एवं दंतरोग नाशक प्रभाव भी है


मात्रा- पत्तों का रस = - 10 मिली. ली.

         पतों का चूर्ण = 3 से 6 ग्राम 

         जड़ का चूर्ण = 2 से 5 ग्राम

                    बीज = 2 से 5 ग्राम 

                     क्षार = 2 से 4 रत्ती (1/2 ग्राम तक)

                    भस्म = 1/2 ग्राम से 2 ग्राम तक) 


वर्णन -  अपामार्ग आमाशय में जाकर पाचक रस बढ़ाता है, अम्लता कम करता है। लिवर के लिए हितकारक है। अपामार्ग के फूल के डंठल तथा बीजों का चूर्ण सर्प तथा अन्य जहरीले जीव-जंतुओं के दंश (काटने) पर उपयोगी है। अपामार्ग के पौधे का काढ़ा तैयार कर पथरी के रोगी को नित्य पिलाने से पथरी टूट-फूटकर बाहर निकल जाती है। सर्वांग सूजन में भी काढ़ा लाभप्रद है।


डायरिया, डिसेंट्री में ताजे पत्तों का काढ़ा शहद के साथ देने से शीघ्र लाभ होता है। अपामार्ग का काढ़ा मूत्रल होने से मूत्र बढ़ता है तथा अम्लता कम होती है। अपामार्ग का क्षार रक्त में मिलकर रक्त को शुद्ध करने तथा रक्त के पोषक तत्त्वों को बढ़ाता है यह क्षार शरीर के प्रत्येक अंगों में जाकर विजातीय (हानिकारक) तत्त्वों को बाहर निकालने का काम करता है। पेटदरद, अपच, पथरी, कफ, बवासीर, संधिवात, सुजाक, पायोरिया, ब्रोंकाइटिस, आमवात, जीर्ण-वात, सिरदरद, बुखार इत्यादि रोगों में इसका प्रभाव चमत्कारिक होता है।


भूतोन्माद में अपामार्ग का रस पिलाने से शीघ्र लाभ होता है। दाँतों के रोगों में अपामार्ग के जड़ या डंठल से दातुन करने से तथा इसके पत्तों का रस मसूड़ों पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।


उपयोग

शीघ्र प्रसव के लिए - इस औषधि में दिव्यता का प्रभाव है। प्रसव में विलंब हो रहा हो; ऐसे समय में रविवार पुष्य नक्षत्र में लकड़ी से खोदकर लाई हुई अपामार्ग की जड़ को कमर में बाँध दिया जाए तो सुप्रसव शीघ्र हो जाता है। सावधानी रखें कि प्रसव के बाद शीघ्र जड़ को खोल देना चाहिए; अन्यथा गर्भाशय बाहर आने का खतरा रहता है। अपामार्ग की जड़ को घिसकर लेप तैयार कर पेड़ पर लेप कर देने से भी शीघ्र सुप्रसव होता है। प्रसव के पश्चात पेड़ को पानी से पोंछ देना चाहिए। 'रवि पुष्ययोग' में इसे पौधे की जड़ विधिपूर्वक लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखना चाहिए। यह समय पर उपयोग में ला सकते हैं।


पथरी–अपामार्ग की ताजी जड़ (6 ग्राम) को पानी में घोट-पीसकर पिलाने से पथरी टूट-टूटकर निकल जाती है। मूत्राशय की पथरी में अधिक प्रभावी है। किडनी के दरद में भी यह औषधि बड़ी लाभप्रद है।


खूनी बवासीर में- इसके बीजों को पीसकर उनका चूर्ण 3 ग्राम लेकर सुबह-शाम चावल के ल धोवन के साथ सेवन कराने से रक्तार्श में खून का है स्राव बंद हो जाता है। खूनी बवासीर में अपामार्ग की जड़, पत्ती और बीजों का चूर्ण भी बराबर मात्रा में मिसरी मिलाकर पानी के साथ लेने से खूनी बवासीर नष्ट होता है।


नासूर में- अपामार्ग के पत्तों का रस निकालकर नासूर पर नित्य लगाने से नासूर का घाव भर जाता है।


भस्मक रोग में - इस रोग में अधिक मात्रा में खाने की आदत लग जाती है। खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है। भूख भी अधिक लगती है। जरूरत से अधिक भोजन करता है। इसमें अपामार्ग के बीज 10 ग्राम लेकर दूध में डालकर खीर बनाकर खिलाने से भस्मक रोग समाप्त हो जाता है।

रक्त प्रदर में - सफेद अपामार्ग का पंचांग चूर्ण 20 ग्राम, भेड़ के बालों की भस्म 20 ग्राम, सुनहरा गेरू 20 ग्राम तीनों को मिलाकर रखें। 6 ग्राम मात्रा नित्य लेकर गाय के कच्चे ताजे दूध के साथ पिलाने से रक्त प्रदर में शीघ्र लाभ मिलता है।


दंत रोगों में- अपामार्ग की ताजी जड़ तथा तना से प्रतिदिन दातुन करने से दाँत मोती की तरह चमकते हैं तथा दाँतों का दरद, मसूड़ों की सूजन, दाँतों का हिलना तथा मुँह की श्वास की बदबू दूर होती है। दाँतों से खून आना बंद हो जाता है।


मलेरिया ज्वर में- अपामार्ग के पत्ते लेकर उसमें समभाग काली मिर्च पीसकर तथा समान भाग गुड़ लेकर दो-दो रत्ती की गोली बनाकर लेने से नहीं आता है। बुखार


बहरेपन में - बहरापन, कान में सांय-सांय की आवाज गूँजना, कर्णस्राव आदि में अपामार्ग की ताजी जड़ें लाकर, धोकर उसका रस निकालें। रस की मात्रा से आधी मात्रा में तिल का तेल मिलाकर मंद आँच पर गरम करें। जब रस जल जाए तथा तेल मात्र शेष रहे, तब आग से उतारकर ठंढा होने पर छानकर शीशी में भरकर रखें। जब कान में डालना हो 3-4 बूँद तेल हलका गरम कर इस सिद्ध तेल को कान में रूई या ड्रापर के सहारे टपका दें। प्रतिदिन कान में डालने से बहरापन दूर होता है। 


आँख के रोगों में -आँखों की फूली, रतौंधी, लाली इत्यादि में अपामार्ग का प्रयोग बड़ा लाभप्रद है। अपामार्ग की जड़ को पानी के साथ चंदन की तरह घिसकर लेप बनाकर आँखों में आँजने से आँखों की फूली तथा दूसरे नेत्र रोगों में लाभ पहुँचता है। रतौंधी हो तो (रात्रि में दिखाई न देना) जड़ का 6 ग्राम चूर्ण भोजन के बाद सेवन करके पानी पीकर सो जाएँ। यह प्रयोग कुछ दिन लगातार करने से अच्छा लाभ होता है।


कंठमाला में- अपामार्ग की जड़ को जलाकर भस्म बना लें। उस भस्म को छानकर रख लें। प्रतिदिन 2 ग्राम भस्म पानी के साथ सेवन करें तथा भस्म को कंठमाला की गाँठों पर लगाएँ ।


दमा, खाँसी, श्वास आदि में- बार-बार खाँसी का वेग और श्वास की तकलीफ में अपामार्ग का क्षार 1/2 ग्राम मात्रा में लेकर आधा कप गरम पानी में मिलाकर रोगी को दिन-रात में 4-5 बार पिलाने से शीघ्र लाभ होता है। जमा हुआ कफ (श्लेष्मा) पतला होकर निकल जाता है। शहद के साथ भी सेवन करा सकते हैं।


कामशक्ति की कमजोरी में - अपामार्ग की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम लेकर 2 रत्ती बंग भस्म मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करें।


चर्म रोग (फोड़ा-फुंसी, खुजली आदि ) में— अपामार्ग के पत्ते और जड़ के कल्क से सिद्ध तेल से मालिश करें। फोड़े पर तेल में भिगोकर रूई का फाया रखें। शरीर के किसी भी भाग में घाव होने एवं रक्तस्राव की दशा में अपामार्ग के पत्तों का रस लगाने से रक्तस्राव बंद हो जाता है।


योनिशूल में - योनि मार्ग मे खुजली या जलन हो तो अपामार्ग के ताजे पत्ते पीसकर उसमें मक्खन मिलाकर योनि मार्ग में लेप करने से योनिशूल नष्ट होता है।


सुजाक में- अपामार्ग का स्वभाव सौम्य एवं मूत्रल है। मूत्रजनक पेशी पर प्रत्यक्ष क्रिया कर सूजन एवं जलन कम करता है। मूत्र की मात्रा बढ़ाकर अम्लता को कम करता है। अन्य मूत्रल औषधियों के साथ सेवन कराने से यथेष्ट लाभ होता है।

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