Jaiphal Ke Fayde | जायफल - जावित्री के घरेलू उपयोग , कई समस्या से निजात दिलाएंगे

Jaiphal Ke Fayde | जायफल - जावित्री के घरेलू उपयोग , कई  समस्या से निजात दिलाएंगे
 जायफल - जावित्री के घरेलू उपयोग , कई  समस्या से निजात दिलाएंगे 

जायफल - जावित्री के घरेलू उपयोग

जायफल घरेलू मसालों में तो प्रयुक्त होता ही है। ले घरेलू औषधियों में दादी माँ के नुसखों के रूप में परंपरागत घरेलू चिकित्सा में प्रयुक्त होता रहा है। आयुर्वेदिक विभिन्न पाकों में तथा मिठाइयों में भी इसका प्रयोग ह होता है। पान खाने वाले लोग मुख की सुगंधि के लिए इसे पान के साथ खाते हैं।


जायफल के फल शंक्वाकार गोल आकार में अमरूद की तरह होते हैं। फल के अंदर के बीज का उपयोग जायफल के रूप में करते हैं। जायफल के ऊपर की त्वचा (छाल) जो बीज को आवृत्त करती है, फल पकने पर वही छाल फट जाती है, जिसे 'जावित्री' के रूप में जाना जाता है। जायफल और जावित्री के गुण प्रायः समान ही होते हैं।


[नोट- जायफल और जावित्री (जायफली) का उपयोग आधा ग्राम से एक ग्राम तक की मात्रा में ही किया जाता है। छोटे बच्चों के लिए उपयोग में लाने के लिए पत्थर पर चंदन की तरह घिसकर 2 से 4 रत्ती की मात्रा पिलाई जाती है ।]


आयुर्वेदिक मतानुसार जायफल के गुण दोष- अनिद्रा, दाँतदरद, प्रमेह, वीर्य विकार, जुकाम, हिचकी एवं उलटीनाशक है। वात एवं कफ का नाश करता है। पेटदरद, दस्त, हैजा, पीनस, श्वास, खाँसी, ग्रहणी रोग, अजीर्ण, सिरदरद, अनिद्रा, पाचकक्षमता की कमी एवं हृदयरोग को दूर करता है। दुर्गंधनाशक, मल बाँधने वाला तथा दौरा इत्यादि वात-विकारों को नष्ट करता है। व्रण (घाव) को ठीक करता है। मलरोधक है। जोड़ों की जकड़न मिटाता है। गर्भाशय का शोधन करता है। भूख बढ़ाता है। पाचकशक्ति बढ़ाने की क्षमता है।

उपयोग

• बच्चों के अपच में- जब बच्चों को दूध नहीं पचता हो तो एक पाव दूध में एक पाव पानी मिला लें और जायफल 1 ग्राम डालकर उबालें, ठंढा कर छान लें तथा यह दूध पिलाएँ। इससे पाचन भी ठीक होता है, मल की दुर्गंधता दूर होती है तथा मल बँधा हुआ नियमित होने लगता है।

• सिरदरद में - जायफल को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर लेप बनाकर मस्तक पर लेप करने से लाभ होता है।

• संधिवात में - यह एक जटिल व्याधि है। खान-पान, रहन-सहन में व्यापक बदलाव लाना होता है। वात-व्याधि के कारण संधियों में दरद, सूजन, जकड़न इत्यादि में जायफल का तेल सरसों के तेल में मिलाकर संधियों एवं मांसपेशियों की मालिश दिन में 2-3 बार करने से संधियों की हलचल सामान्य होकर राहत मिलती है।

• हैजा में - हैजा रोग में 1 ग्राम जायफल को ठंढे पानी में घिसकर पिलाते हैं। हैजा में हाथ-पैरों की ऐंठन दूर करने के लिए 5 ग्राम जायफल को 100 ग्राम सरसों के तेल में एक बार मिलाकर उबाल लें तथा छानकर सहने योग्य गरम रहे, तब हाथ-पैरों में मालिश करें, इससे लाभ होता है।

• अनिद्रा में - जायफल को गोघृत के साथ पत्थर पर घिसकर रात्रि के समय पलकों पर लेप करने से नींद आ जाती है। सोने के समय एक गिलास दूध में 1 ग्राम जायफल चूर्ण डालकर, उबालकर ठंढा कर लें और मिसरी मिलाकर पीने से गहरी नींद आ जाती है।

• नेत्रों की खुजली एवं नेत्रों से पानी बहने पर - जायफल को ठंढे पानी में घिसकर आँखों के चारों ओर लेप करने से लाभ होता है।

• उदर-वायु विकार में - पेट की वायु (अफरा) में जायफल चूर्ण 2 रत्ती तथा सोंठ चूर्ण 2 रत्ती में सेंकें हुए जीरे का चूर्ण आधा ग्राम मिलाकर भोजन के पूर्व पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

• अपच एवं उलटी में - 1 नग जायफल को पीसकर 1 लीटर पानी में चाय की तरह उबालें। इस पानी को ठंढा करने के बाद छानकर आधा कप मात्रा में दो-दो घंटे के बाद सेवन कराएँ।

• दंत पीड़ा में - जायफल के तेल में रूई का फाहा भिगोकर पीड़ाग्रस्त दाँत या दाढ़ में रखने से दरद बंद हो जाता है। दंतकृमि नष्ट हो जाते हैं।

• चेहरे की झाँई में - जायफल और हलदी गाँठ को दूध के साथ पत्थर पर घिसकर लेप बनाएँ और चेहरे पर लेपन करें। कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग से झाँई मिट जाती है। चेहरे की त्वचा के रंग में निखार आ जाता है।

Note :- 

जावित्री (जायपत्री) के उपयोग


• पौष्टिकता के लिए - जावित्री का उपयोग जीवनी शक्तिवर्द्धक विभिन्न आयुर्वेदिक पाकों में किया जाता है।

• कफज व दमा में -  कफज श्वासरोग में जावित्री का आधा ग्राम चूर्ण पान के साथ खाने से लाभ होता है।

• चेहरे की झाँई में- जावित्री को पीसकर शहद के साथ मिलाकर लेप करने से झाँई मिटने लगती है।

• मूत्र व्याधि में - वातज विकृति के कारण मूत्र बूँद-बूँद लगातार निकलता है। इस रोग में जावित्री को पीसकर उसका लेप कटिप्रदेश में एवं पीठ के निचले हिस्से में करना चाहिए। आधा ग्राम जावित्री चूर्ण पानी के साथ सेवन भी कराना चाहिए।

• आँव एवं दस्त में – जावित्री चूर्ण आधा ग्राम एक गिलास छाछ के साथ 4-4 घंटे बाद दिन में तीन बार सेवन कराना चाहिए। 8-10 दिन तक प्रयोग करना चाहिए।

• छोटे बच्चों के दस्त में - जावित्री चूर्ण की आधी रत्ती मात्रा शहद के साथ दिन में तीन बार चटाने से लाभ होता है।

• त्वचा की सुन्नता एवं संधिवात में- जावित्री तेल से मालिश करने से त्वचा की सुन्नता मिटती है। संधियों में दरद, सूजन एवं जकड़न मिटती है।

• बिगड़े हुए घावों पर – जावित्री या जायफल के तेल को मरहम में मिलाकर लगाने से लाभ होता है।


• चेतावनी – जायफल और जावित्री चूर्ण की मात्रा 1 ग्राम से अधिक लेने से उष्ण प्रभाव से सिरदरद मूर्च्छा, वीर्य का पतलापन आदि विकार हो सकते है इसकी हानि के निवारण के लिए धनिया के बीजों के साथ मिसरी का सेवन कराना चाहिए।




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